गांव की परिपाटी
आज दिनांक २४.११.२३ को प्रदत्त विषय,' गांव की परिपाटी ' पर प्रतियोगिता वास्ते मेरी प्रस्तुति:
गांव की परिपाटी:
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आचार -व्यबहार हैं बदले सब जगह,पर गांवों में अब भी बेहतर हैं,
बहुएं पल्ला सर पर रखतीं बड़े लोगों का मान बहुत है।
गांव मे कृषि कार्य मे अब युवाओं का मन नहीं लगता,
शहर निवासियों के ठाठ देख कर उद्वेलित उनका मन होता।
इसी सोच के वश में हो कर युवा शहर आ जाते हैं,
प्रतिस्पर्धी माहौल में वे मुश्किल से कुछ कर पाते हैं।
मगर मानव है आशावादी ,आशा उनकी बनी रहती,
आज नहीं तो कल पूरी होगी आशा,ये आशा हरदम रहती
शहरों मे अवसर तो बहुत हैं, प्रतिस्पर्धा लेकिन कम तो नहीं,
मस्तिष्क अगर विकसित हो किसी का तो शहर से ठाठ ।
पश्चिमी सभ्यता को अपना कर महिलाएं,लाज -शर्म सब खो बैठीं,
आधे आधे कपड़े पहने, शारीरिक महनत को त्याग बैठीं।
शारीरिक महनत हो या फ़िर ,व्यायाम आवश्यक है,
टी वी मोबाइल के चलते, नहीं कोई इनका पूरक हैं।
गांव मे ज्यादा रोग नहीं हैं, खान-पान सब घर का है,
जंक फ़ूड,तो कोई न खाता, घर के दूध-घी का चस्का है।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़
Gunjan Kamal
03-Dec-2023 06:22 PM
👏👌
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
25-Nov-2023 07:52 AM
सुन्दर सृजन
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